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जाने वो पांच कारण जिसके वजह से सपा को हार का करना पड़ा सामना.. देखे पूरी खबर..

उत्तर प्रदेश में शानदार जीत के साथ बीजेपी दोबारा सरकार बनाने जा रही है. बीजेपी ने सारे समीकरण ध्वस्त करते हुए 264 सीटें हासिल की हैं. समाजवादी पार्टी को 134 सीट मिली हैं. यूपी की सियासत में ऐसा पहली बार होगा, जब कोई मौजूदा पार्टी दोबारा से सूबे में सरकार बनाएगी. योगी आदित्यनाथ की अगुआई में बीजेपी ने यूपी की सिसायत के कई मिथकों को भी चकनाचूर कर दिया है, जो लंबे समय से प्रदेश की राजनीति में चले आ रहे थे. 


बीजेपी की इतनी बड़ी जीत के बाद पार्टी कार्यकर्ता सड़कों पर आ गए और जीत की होली मनाने लगे. लेकिन सूबे में समाजवादी पार्टी के लिए ये नतीजे करारा झटका हैं. नतीजों के बाद कार्यकर्ताओं के बीच मायूसी छा गई. आइए आपको बताते हैं कि योगी आदित्यनाथ के बुलडोजर के सामने क्यों पंचर हो गई अखिलेश यादव की बाइसिकल?


1. योगी आदित्यनाथ की छवि: यूपी चुनाव में मुख्य लड़ाई योगी आदित्यनाथ और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के बीच थी. दोनों नेता पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरे थे. लेकिन एक सख्त प्रशासक की छवि का फायदा कहीं न कहीं योगी आदित्यनाथ को मिला. मजबूत लॉ एंड ऑर्डर, दंगामुक्त प्रदेश जैसी बातें कहीं न कहीं लोगों के मन में बैठी रहीं. अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे बाहुबलियों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने के काम ने लोगों के मन में योगी आदित्यनाथ की छवि को और मजबूत किया. वहीं अखिलेश यादव पर 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों, तुष्टीकरण और अपने राज में अपराध की यादें भारी पड़ गईं. 


2. केंद्र की योजनाएं: कोरोना के समय से चला आ रहा मुफ्त राशन, उज्ज्वला, पीएम आवास, आयुष्मान भारत, किसान सम्मान निधि जैसे योजनाएं बीजेपी के लिए गेमचेंजर साबित हुईं. इन योजनाओं का एक बड़ा लाभ महिलाओं को मिला, जो बीजेपी के लिए वोट में तब्दील हो गया. अगर ट्रेंड देखा जाए तो छठे और सातवें चरण में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में 8-12 प्रतिशत ज्यादा वोटिंग की. वोटिंग सेंटर्स पर मतदान करने के लिए महिलाओं की लंबी कतार देखी गईं. अखिलेश यादव की सपा की हार के कारणों में से एक ये योजनाएं भी रहीं. 


3. जातियों की लामबंदी: अखिलेश यादव ओम प्रकाश राजभर और जयंत चौधरी के साथ मैदान में उतरे थे. लेकिन दोनों पार्टियों को साथ लाने का उनका दांव फेल हो गया. यादव वोट बैंक भी बंटा हुआ नजर आया. कई मुस्लिम बहुल सीटों पर बीजेपी आगे नजर आई. बीजेपी के लिए मौर्य, गैर जाटव दलित और गैर यादव वोटर्स ने जमकर वोटिंग की. 


4. रैलियों में भीड़ दिखी लेकिन वोट नहीं मिले: अगर अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के पिछले दिनों के ट्विटर और फेसबुक को खंगाला जाए तो तस्वीरों और वीडियोज में लोगों का हुजूम देखने को मिलेगा. लेकिन वो भीड़ जो रैलियों में आई वो वोटों में तब्दील नहीं हो पाई. इससे ये भी साबित होता है कि अखिलेश यादव ने बीजेपी को इस चुनाव में चुनौती जरूर दी लेकिन वह अभी उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाए, जहां वह अकेले दम पर सरकार बना लें. इसके अलावा उनके 300 यूनिट फ्री बिजली और समाजवादी पेंशन के वादे भी उनकी नैया पार नहीं लगा सके.


5. दिग्गज नेताओं का साथ नहीं मिला: अखिलेश यादव इस चुनाव में सपा की ओर से 'वन मैन शो' थे. टिकट बंटवारे से लेकर सीट बंटवारे तक और चुनावी कैंपेन से लेकर मेनिफेस्टो तक, हर जगह अखिलेश यादव ने मेहनत की. लेकिन उनके पास कोई ऐसा नेता नहीं था, जो उनका सहायक बनता. मुलायम सिंह यादव उम्र के कारण सिर्फ करहल को छोड़कर कहीं और ज्यादा प्रचार नहीं कर पाए. इसके अलावा आजम खान जेल में हैं. इस वजह से अखिलेश यादव अकेले पड़ गए और इस बार भी सरकार बनाने का उनका सपना अधूरा रह गया.