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शिव पूजा के दौरान शंख बजाने को क्यों है मनाही?


हिंदू धर्म में प्रत्येक देवता की पूजा करने के लिए कुछ नियम हैं. भगवान विष्णु को शंख बहुत प्रिय है और शंख से जल चढ़ाने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं, लेकिन शिव की पूजा में शंख का उपयोग नहीं किया जाता है. शंख धार्मिक दृष्टि से बहुत ही पवित्र माना जाता है. बहुत से लोग नहीं जानते कि शिव को शंख क्यों नहीं चढ़ाया जाता है या शिव पूजा में शंख क्यों नहीं बजाया जाता है. इसके पीछे की वजह शिव पुराण में है. आइये जानते हैं पंडित इंद्रमणि घनस्याल से शिव पूजा (Shiva Puja) में क्यों वर्जित शंख का उपयोग. पुत्र प्राप्ति का वरदान शिव पुराण कथा के अनुसार, दैत्यराज दंभ की कोई संतान नहीं होने पर उन्होंने भगवान विष्णु से कठिन तपस्या करके पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगा था. दैत्यराज की कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनको आशीर्वाद दिया. इसके बाद दंभ के यहां पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया. शंखचूड़ का घोर तप कथा के अनुसार, ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए शंखचूड़ ने घोर तप किया. इस पर ब्रह्माजी ने वर मांगने को कहा. तब शंखचुड़ ने मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए. इस पर ब्रह्माजी ने तथास्तु कहते हुए श्रीकृष्ण कवच दिया. इसके बाद तुलसी और शंखचूड़ का विवाह हुआ.


देवताओं पर अत्याचार कहा जाता है इसके बाद शंखचूड़ ने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया. इस पर भगवान विष्णु से गुहार लगाई गई. लेकिन दंभ को पुत्र का वरदान देने के कारण भगवान विष्णु ने शंकर जी की आराधना की, जिसके बाद शिवजी देवताओं की रक्षा के लिए आगे आए. हड्डियों से बना शंख श्रीकृष्ण कवच की वजह से शिवजी शंखचूड़ का वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे. तब विष्णु जी ने ब्राह्मण रूप धारण कर दैत्यराज से उसका श्रीकृष्ण कवच दान में ले लिया. इसके बाद भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से शंखचूड़ का वध किया. कहा जाता है कि उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ. यही वजह है कि भगवान भोलेनाथ की पूजा में शंख का उपयोग नहीं किया जाता.