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शिक्षा से हेागा लड़का-लड़की में भेदभाव खत्म: सुब्बा राव सावरकर


रायपुर। आज के परिदृश्य में यह जरूरी है कि समाज में स्त्री और पुरुष को शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हों, क्योंकि शिक्षा के माध्यम से ही लड़का-लड़की के भेदभाव से समाज को मुक्त किया जा सकता है। समाज के समुचित विकास के लिए स्त्रियों के सहयोग की भी उतनी ही आवश्यकता है जितनी पुरुष के योगदान की। दूसरा स्त्रियों को भी समाज में अपनी प्रतिष्ठा और महत्व सिद्ध करने के लिए शिक्षित होकर आत्मनिर्भर और साहसी बनना होगा, ताकि वह स्वयं ही जीवन में आने वाली प्रत्येक समस्या का समाधान करने में सक्षम हों और दूसरों पर आश्रित न रहे। आज मिडिया कि भी जिम्मेदारी है कि वह समाज में स्त्रियों के सम्मान और अधिकार के लिए आवाज उठाए न कि स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारों का प्रचार-प्रसार करके लोगों में भय और आतंक का वातावरण बनाए। जिससे माता-पिता अपनी बेटियों की सुरक्षा के प्रति सावधानी के नाम पर उन्हें बंधनों में कैद करना शुरू कर दें। समाज के प्रत्येक वर्ग को स्त्रियों के मान-सम्मान और अधिकारों के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना चाहिए, ताकि समाज में एकता और प्रेम का संदेश दे सकें।


सुब्बा राव सावरकर ने कहा कि अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों लड़कियां।आज के इस युग में यहां इस बात पर जोर दिया जाता है कि लड़का-लड़की एक समान हैं। दोनों को शिक्षा, सुरक्षा एवं अन्य सभी अधिकार समान रूप से मिले हुए हैं। ऐसे समय में भी समाज में कुछ वर्ग ऐसे हैं जहां आज भी लड़कियों को प्रताड़ना सहन करनी पड़ती है। इसका कारण केवल यह है कि उन वर्गों में आज भी शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं है और लड़कियां आज भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं। इसी कारण उन्हें अपना वास्तविक महत्व पता नहीं चलता और वे सदा समाज में अपने आपको निरीह, बेबस और लाचार मानकर सामाजिक अत्याचारों को सहन करती रहती हैं। ऐसे में आवश्यकता है कि उनको ऐसी मूल्य आधारित शिक्षा दी जाए जिससे वे आत्मनिर्भर और जागरूक होकर अपने सामाजिक मूल्य को समझें और आत्मविश्वास से समाज के लिए अपना योगदान दें। दुनिया की परवाह करने वाला मनुष्य कभी सफल नहीं हो सकता। अत: लड़कियों को भी दुनिया की परवाह किए बिना आगे बढ़ना चाहिए और अत्याचारों का विरोध कर सभी सामाजिक बुराइयों का अंत करना चाहिए, ताकि एक उत्तम समाज का निर्माण हो सके।