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कन्हैया के हत्यारों के पाकिस्तान-सऊदी से कनेक्शन? जांच में जुटीं एजेंसियां

उदयपुर में हिंदू दर्जी कन्हैया लाल की बर्बर हत्या की जांच में एक के बाद एक कई बड़े खुलासे हो रहे हैं। अब सामने आया है कि रियाज अटारी के अलावा हत्या के अन्य साजिशकर्ता वर्चुअल प्रॉक्सी सर्वर का इस्तेमाल करके पाकिस्तान और सऊदी अरब में कॉल करते थे। हत्यारे फोन पर एक पाकिस्तानी नागरिक से बात करते थे, यह शख्स उसे साऊदी अरब में मिला था। कन्हैया की गला काटकर हत्या करने वाला अटारी 2019 में अपनी जमीन बेचने के बाद साऊदी गया था, जहां उसकी इस शख्स से मुलाकात हुई थी।


सुरक्षा एजेंसियों की जांच में सामने आया है कि रियाज की मदद करने वाले कुछ साजिशकर्ताओं ने अपने इंटरनेट प्रोटोकॉल (आईपी) अड्रेस को छिपाने के लिए अपने मोबाइल फोन पर वीपीएन का इस्तेमाल किया था। उन्होंने वीपीएन का इस्तेमाल करके कन्हैयालाल की हत्या से कुछ दिन पहले सऊदी अरब और पाकिस्तान में कॉल भी किए थे। 20 जून को नूपुर शर्मा के खिलाफ एक रैली के बाद स्थानीय अंजुमन की बैठक में कन्हैया लाल की हत्या करने का फैसला लिया गया था। हालांकि हत्यारे 26 जून को कन्हैया लाल की दुकान पर उनका सिर काटने गए थे, उसदिन कन्हैया दुकान नहीं गए थे।




दावत ए-इस्लामी के फॉलोवर थे दोनों हत्यारे

आरोपियों के पास से जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज की फोरेंसिक रिपोर्ट अभी तक सामने नहीं आई है लेकिन अब यह साफ हो चुका है कि अटारी 2019 में सऊदी अरब में सिंध के एक पाकिस्तानी नागरिक उमर से मिला था। वहीं गौस 2013 और 2019 में सऊदी अरब गया था। इसके अलावा दोनों 2014 में दावत-ए-इस्लामी के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पाकिस्तान के कराची गए थे। दोनों हत्यारे दावत-ए-इस्लामी के फॉलोअर था। 


बरेली से है दावत-ए-इस्लामी का कनेक्शन

दावत-ए-इस्लामी भारतीय उपमहाद्वीप में बरेलवी आंदोलन के संस्थापक अहमद रज़ा खान के रास्ते पर चलते हुए एक मूवमेंट चलाता है। रज़ा खान का जन्म 19वीं सदी में बरेली में हुआ था। अटारी 2019 में कट्टरवादी संगठन पीएफआई समूह की राजनीतिक शाखा एसडीपीआई में भी शामिल हुए थे। दिलचस्प बात यह है कि पीएफआई-एसडीएफआई लिंक रियाज अटारी, अमरावती फार्मासिस्ट उमेश कोल्हे के हत्यारों और अजमेर सूफी दरगाह के खादिम सरवर चिश्ती के बीच कॉमन है।