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Khuda Haafiz 2 Review: , खुदा हाफिज की दूसरी कड़ी में कुछ भी नया नहीं,खुद को दोहराते दिखे विद्युत जामवाल

कुमार मंगत पाठक, अभिषेक पाठक, स्नेहा बिमल पारेख, राम मीरचंदानी, संजीव जोशी, आदित्य चौकसे, हुसनैन हुसैनी और संतोष शाह, इन कुल आठ लोगों ने मिलकर बनाई है हिंदी सिनेमा के एक्शन हीरो विद्युत जामवाल की नई फिल्म ‘खुदा हाफिज चैप्टर 2 अग्निपरीक्षा’। इतने सारे प्रोड्यूसर और इतना लंबा नाम, फिल्म के पहले भाग के ओटीटी पर प्रसारित हो चुके होने का साइड इफेक्ट है या कुछ और, ये तो पता नहीं लेकिन फिल्म देखकर ये जरूर समझ आता है कि जी स्टूडियोज के पास अधकचरी एक्शन फिल्में बनाने का जरूर कोई अलग विभाग खुल गया है। कहानी हो ना हो, एक्शन फिल्म में पैसा लगाने  को ये कंपनी हरदम एकदम तैयार। पहले ‘धाकड़’, फिर ‘राष्ट्रकवच ओम’ और अब ‘खुदा हाफिज 2’।


विद्युत जामवाल की अग्निपरीक्षा

41 साल के हो चुके विद्युत जामवाल की एक्शन यूएसपी पहले पहल साल 2011 में रिलीज हुई फिल्म ‘फोर्स’ में दुनिया ने देखी। तब से 11 साल में वह 12 हिंदी फिल्मों में दिख चुके हैं। पिछली दो फिल्में ‘द पॉवर’ और ‘सनक’ सीधे ओटीटी पर रिलीज हुईं और दर्शकों ने उन्हें खास नोटिस भी नहीं किया। और शायद इसीलिए फिल्म ‘खुदा हाफिज चैप्टर 2 अग्निपरीक्षा’ को इसीलिए सिनेमाघरों तक पहुंचना जरूरी था। अभी उनको परदे पर ‘शेर सिंह राणा’ बनना है और दुनिया को ये दिखाना है कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान के अंतिम अवशेष अफगानिस्तान से ले आना भी कितनी बड़ी ‘राष्ट्रभक्ति’ होती है। ये अलग बात है कि खुद पृथ्वीराज चौहान पर बनी फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ ने ही बॉक्स ऑफिस पर पानी नहीं मांगा। फिल्म ‘खुदा हाफिज चैप्टर 2 अग्निपरीक्षा’ की ओपनिंग और इसके पहले वीकएंड पर ही इसका पूरा दारोमदार टिका है और फिल्म ‘थॉर: लव एंड थंडर’ के मुकाबले उतरने से ये रास्ता भी आसान नहीं है।


फारुक कबीर का औसत निर्देशन

विद्युत जामवाल मार्शल आर्ट्स में निपुण कलाकार हैं। कुछ कुछ ब्रूस ली जैसे। नई पीढ़ी उन्हें टोनी जा से जोड़कर देख सकती है। टोनी जा से पिछली बार ‘मॉन्स्टर हंटर’ के समय बात हुई थी तो उन्होंने भी विद्युत जामवाल का जिक्र बातचीत में किया था। मुझे विद्युत की फिल्म ‘यारा’ उनके करियर की बेहतरीन फिल्म लगती है। विद्युत के पास अभिनय की अच्छी खासी क्षमताएं भी हैं और विस्तार भी, लेकिन उन्हें परदे पर उकेरने के लिए तिग्मांशु धूलिया जैसा निर्देशक चाहिए। निर्देशक फारुक कबीर ने अपनी पिछली फिल्म ‘खुदा हाफिज’ और अब फिल्म ‘खुदा हाफिज चैप्टर 2 अग्निपरीक्षा’ में भी पूरा फोकस विद्युत को एक्शन हीरो मानने पर ही रखा है। विद्युत ने भी इसी नाम से अपनी फिल्म कंपनी भी खोल ली है। विश्वसिनेमा में थिलर और एक्शन फिल्में सबसे ज्यादा देखी जाती हैं। फारुक कबीर और उनके आधा दर्जन से ज्यादा निर्माता भी इसी लिहाज से इस प्रोजेक्ट को बेचने का इरादा रखकर बाजार में उतरे हैं। फारुक कबीर का निर्देशन इस फिल्म में औसत है। वह सेफ खेलने वाले निर्देशक हैं और ज्यादा कुछ प्रयोग उन्होंने कहानी कहने में किए नहीं हैं।


घिसी पिटी फॉर्मूला कहानी

ऐसी फिल्मों में जोर पूरा इस बात पर रहता है कि कैसे दर्जन भर एक्शन सीन्स सवा दो, ढाई घंटे की फिल्म में डाले जाएं। कहानी इन एक्शन दृश्यों को जोड़े रखने के लिए तलाशी जाती है। ऐसा ही कुछ करके निर्माताओं ने अच्छे खासे कलाकार टाइगर श्रॉफ का करियर संकट में डाल दिया, अब बारी विद्युत जामवाल की है। कहानी इस बार यूं है कि अगवा करके विदेश ले जाई गई अपनी बीवी को बचाकर वापस वतन लौटे समीर की बीवी नरगिस की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। इलाज भी चल रहा है। एक बच्ची परिवार में आती है। समझा जाता है कि इससे नरगिस की हालत सुधरेगी लेकिन इस बार ये बच्ची अगवा हो जाती है। इसके बाद क्या होना है, आप अच्छी तरह समझ सकते हैं। हिंदी सिनेमा तकनीकी रूप से चाहे जितनी तरक्की कर ली हो, कहानियों में निवेश करने का सिस्टम अब तक यहां ठीक से बना नहीं है। और, यही इस फिल्म की भी सबसे कमजोर कड़ी है।



एक्शन के नाम पर कुछ नया नहीं

फिल्म ‘खुदा हाफिज चैप्टर 2 अग्निपरीक्षा’ देखते समय बार बार कोफ्त इस बात को लेकर होती है कि विद्युत जामवाल खुद अपने गुण दोषों के अनुसार कहानियां क्यों नहीं तलाश करते हैं। उन्होंने अपनी कंपनी खोली है तो हो सकता है आगे वह ऐसा करें भी लेकिन बतौर हीरो परदे पर दिखते रहने के लिए उनके पास ज्यादा समय है नहीं। उन्हें इस बारे में जैसन स्टेथम की फिल्में भी देखनी चाहिए और ड्वेन जॉनसन का सिनेमा भी। विद्युत के लिए इन दोनों की सोच की कहानियां बिल्कुल मुफीद रहतीं। फिल्म ‘खुदा हाफिज चैप्टर 2 अग्निपरीक्षा’ में जेल वाले एक्शन सीन और क्लाइमेक्स की चेज सीक्वेंस छोड़ दें तो अधिकतर दृश्यों में विद्युत खुद को दोहराते ही दिखते हैं। अपनी बॉक्स ऑफिस वैल्यू सुधारने के लिए उन्हें कुछ तो नया कम से कम अपने प्रशंसकों के लिए पेश करना चाहिए। अभिनय के लिहाज से विद्युत की ही तरह शिवालिका का काम है। राजेश तैलंग इतना ज्यादा खुद को दोहराने लगे हैं कि कोफ्त होने लगी है। शीबा चड्ढा ने जरूर रिस्क लेकर कुछ अलग करने की कोशिश की है।


देखें कि न देखें

तकनीकी तौर से निर्देशक फारुक कबीर की बंधी बंधाई लीक पर चलती फिल्म फिल्म ‘खुदा हाफिज चैप्टर 2 अग्निपरीक्षा’ सिवाय इसकी सिनेमैटोग्राफी के और किसी विभाग में प्रभावित नहीं करती। जितन हरमीत सिंह का कैमरा एक्शन दृश्यों में खास तौर से प्रभावित करता है। एडीटर संदीप फ्रांसिंस को फिल्म को कम से कम 20 मिनट कम रखना चाहिए था, तब ओटीटी के लिए ये फिल्म बिल्कुल ठीक होती। मिथुन, विशाल मिश्रा और शब्बीर अहमद सब मिलकर भी एक ढंग का गाना फिल्म में रचने में नाकाम रहे। अमर मोहिले का बैकग्राउंड म्यूजिक फिर भी बेहतर है। इस वीकएंड पर एक्शन और अंग्रेजी फिल्मों के शौकीन वैसे भी ‘थॉर: लव एंड थंडर’ देखने वाले हैं और जिनकी दिलचस्पी अच्छी कहानियों में है, वे ‘रॉकेट्री: द नंबी इफेक्ट’ देख सकते हैं। फिल्म ‘खुदा हाफिज चैप्टर 2 अग्निपरीक्षा’ ऐसी फिल्म है जिसे ओटीटी पर देखना ही बेहतर होगा।