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कारोडों रुपये का बंदर बाट,बारिश के पानी को सहेजने के लिये बने बांध में एक बूद पानी भी नही...

सरकार के किसानों कि सहायता के लिए आये दिन कुछ ना कुछ करती रहती है. जिससे किसान उन्नत खेती कर सके. इसी बीच बारिश के पानी को सहेजने, उसके सिंचाई में उपयोग और भिलाई के औद्योगिक क्षेत्रों को आपूर्ति के लिए 13 साल पहले शुरू की गई मोहड़ जलाशय परियोजना ने दम तोड़ दिया है। बालोद और राजनांदगांव जिले के करीब 8 गांव को शामिल कर बनाए जाने वाले इस जलाशय में 288 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि खर्च की चुकी है।


कुदारी-दल्ली, मोहड़, मरसकोला, मंगचुवा, उच्चेटोला, बंजारीडीह, बुटाकसा, सिरलगढ़ जैसे गांवों में जंगल के बीच करीब 410 हेक्टेयर में बना जलाशय जल संसाधन विभाग के अधिकारियों और जिम्मेदारों के घोटालों की कहानी कह रहा है। दैनिक भास्कर की टीम जब इन गांवों तक पहुंची, ग्रामीणों से बात की, तो एक ही बात समझ में आई कि पूरा प्रोजेक्ट सिर्फ कमीशन और घोटाले के लिए तैयार किया गया।

इस जलाशय में पिछले 13 साल में एक बूंद पानी स्टोर नहीं किया गया। वहीं जो निर्माण किए गए, वह इतने अधिक घटिया थे कि अब जब इस प्रोजेक्ट को दोबारा शुरू करना हो तो सब कुछ नए सिरे से करना होगा। वर्ष 2009 में इस प्रोजेक्ट की मंजूरी मिली। प्रोजेक्ट जब तैयार किया गया, उस समय दुर्ग जल संसाधन विभाग से इसकी कार्ययोजना बनी।

पूरे प्रोजेक्ट की गड़बड़ियों को आप इन बिंदुओं से समझें

जमीन का अधिग्रहण किया पर सुरक्षित नहीं किया, आज किसान पुन: जगह पर काबिज हैं और खेती कर रहे हैं।

नहर व जलाशय की लाइनिंग का बेहद घटिया स्तर का हुआ। जंगल के बीच होने की वजह से न ही कभी कोई जांच हुई।

288 करोड़ से ज्यादा की राशि इस प्रोजेक्ट पर खर्च कर दी गई, इसके बाद भी पूरा प्रशासनिक महकमा चुप्पी साधे रहा।

बारिश के पानी को स्टोर करने की दिशा में प्रयास ही नहीं हुए, जलाशय में क्लोजर तक तैयार नहीं किया गया।

जंगल के बीच में यह निर्माण है, इसके बारे में प्रभावित गांव के लोगों के अलावा अन्य को ज्यादा जानकारी तक नहीं है।

किया धरा पुरानी सरकार का हम ठीक कर रहे: रविंद्र चौबे

जल संसाधन मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा कि पुरानी सरकार ने इस प्रोजेक्ट में क्लीयरेंस को लेकर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। हम सारे क्लीयरेंस ले रहे हैं और आने वाले बजट में इस प्रोजेक्ट के लिए प्रावधान भी कर रहे हैं। जल्द ही प्रोजेक्ट शुरू होगा। जिन लोगों को मुआवजा मिल गया है, उन्हें उस जमीन पर खेती नहीं करनी चाहिए।

लापरवाही की इंतहा, बारिश के पानी को सहेजने तक के जतन नहीं

100 एकड़ से ज्यादा का फॉरेस्ट एरिया, अब तक क्लीयरेंस नहीं, न ही इस पर प्रयास हुआ

वर्ष 2009 में स्वीकृत इस प्रोजेक्ट का फॉरेस्ट क्लीयरेंस आज तक नहीं हो पाया है। जलाशय के आसपास 100 से ज्यादा वन विभाग की जमीन है। जहां 2500 से ज्यादा साल, सागोन व अन्य के वृक्ष हैं। जल संसाधन विभाग ने वन विभाग के दिशा निर्देशों का पालन नहीं किया, जिसकी वजह से क्लीयरेंस ही नहीं मिल पाया और यह प्रोजेक्ट अटक गया। दैनिक भास्कर ने जब इस बारे में जिम्मेदारों से बात की, तो उनके मुताबिक नए सिरे से इस पर काम शुरू किया जा रहा है। फॉरेस्ट क्लीयरेंस लेने के लिए आवेदन तैयार किया जा रहा है। ताकि वन विभाग से नियमत: सभी प्रकार की अनुमति मिल सके।

जलाशय के पार से लगा है ग्राम मोहड़, जिसे अब तक विस्थापित तक नहीं किया गया

इस पूरे प्रोजेक्ट में जमकर लापरवाही भी बरती गई है। अनियमितता और घोटाले के साथ अब तक ग्रामीणों के विस्थापन की प्रक्रिया तक नहीं हुई है, जबकि जलाशय का निर्माण कर दिया गया। एक ग्राम ऐसा है, जो अब भी जलाशय के पार के करीब लगा हुआ है। मोहड़ नाम के इस गांव के नाम पर ही जलाशय बनाया गया है। नहर व जलाशय की लाइनिंग का काम इतना अधिक घटिया है कि सीमेंट की गायब हो चुका है, यहां तक नदी के कछार की रेत का ही उपयोग इस जलाशय को तैयार करने के लिए किया गया, इसकी वजह से अब प्रोजेक्ट के शुरू करने में पुन: राशि खर्च करनी होगी।