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परम्पराएं हमारा गौरव हैं, हमें उन्हें निभाना चाहिए: महामंडलेश्वर स्वामी अभयानन्द सरस्वती


लखनऊ। श्रीमदभागवत कथा ज्ञान यज्ञ के छठवें दिन महामंडलेश्वर स्वामी अभयानन्द सरस्वती ने कहा कि हम परम्पराएं निभाते हैं, उस पर तर्क नहीं करते। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र से ही हमारी संस्कृति और सभ्यता जुड़ी है, और जीवित है। यदि हम इन्हीं परम्पराओं को नहीं निभाएंगे तो हमारे पास क्या शेष बचेगा, इसका आंकलन आप खुद कर सकते हैं। यही परम्पराएं हमारा गौरव हैं। हमें उन्हें निभाना चाहिए। अनारकलां के पपनामऊ स्थित वेदांत आश्रम में आयोजित श्रीमदभागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया गया है। आश्रम में देश भर के प्रतिष्ठित संत पधारे हैं। कथा के छठवें दिन रुक्मिणी विवाह के प्रसंग का जिक्र करते हुए स्वामी अभयानन्द ने श्रीकृष्ण और जरासंध के बीच हुए युद्ध का रोचक वर्णन किया। 


श्रद्धालुओं को जरासंध के मायने समझाते हुए कहा कि जरा का मतलब होता है बुढापा और संधि का मतलब होता है मिलन या जुड़ना। जिस तरह जरासंध और भगवान श्रीकृष्ण के बीच 17 बार युद्ध हुआ था। ठीक उसी तरह हर व्यक्ति के जीवन में जरासंध आता है। पहला जरासंध यानि बुढापे की दस्तक तब आती है। जब उसके कान के बगल के बाल सफेद हो जाते हैं, तो वह उन्हें कृत्रिम ​तरीके से काला कर यह मान लेता है कि उसने जरासंध रूपी बुढापे को कुछ समय के लिए दूर धकेल दिया है। पर जब जरासंध यानि बुढापे का दूसरा हमला होता है तो फिर आंखों की दृष्टि कमजोर हो जाती है, तो व्यक्ति उससे बचाव के लिए लेंस लगाता है। इसी तरह अंत में जरांसध रुपी बुढापा जब हमला करता है, तब उनके साथ काल आता है, पर वह उससे पीछा नहीं छुड़ा पाता है। हरि नाम के सुमिरन से ही वह उस भय से मुक्त हुआ जा सकता है। उन्होंने मौजूद श्रद्धालुओं को श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र के विभिन्न पहलुओं के बारे में बताते हुए यह भी समझाया कि क्यों श्रीकृष्ण को रणछोड़ कहा जाता है। उन्होंने भगवान बलराम के जीवन चरित्र का भी रोचक चित्रण कर श्रद्धालुओं की जिज्ञासाओं के समाधान दिएं।