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जानिए दुर्गा चालीसा का पाठ


हिंदू धर्म में मासिक दुर्गाष्टमी का विशेष महत्व माना गया है. आषाढ़ माह की दुर्गाष्टमी बहुत खास बताई जा रही है. जानकारी के मुताबिक ऐसा इसलिए है क्योंकि इस बार यह तिथि गुप्त नवरात्रि के दौरान पड़ रही है. आषाढ़ मास में गुप्त नवरात्रि की दुर्गाष्टमी पर मां दुर्गा के स्वरूप महागौरी की पूजा-आराधना की जाती है. 7 जुलाई दिन गुरुवार यानी आज मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत है. इस दिन माता के भक्त व्रत का संकल्प लेकर मां की भक्ति में लीन हो जाते हैं. अगर आप भी आज उपवास रख रहे हैं और माता की विशेष कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो इस दिन मां दुर्गा की चालीसा का उच्च व साफ उच्चारण के साथ पाठ कर सकते हैं. चालीसा का पाठ करने या सुनने से कष्टों से मुक्ति मिलती है और माता रानी प्रसन्न होती हैं. दुर्गा चालीसा का पाठ नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥ शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥ रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥ तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥ अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुंदरी बाला॥ प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥ शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥ रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सदबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥ धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥ रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥ लक्ष्मी रूप धरो जग माही।


श्री नारायण अंग समाही॥ क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥ हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥ मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥ श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥ केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥ कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥ सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥ नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुंलोक में डंका बाजत॥


शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥ महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥ रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥ परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥ अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥ ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नरनारी॥ प्रेम भक्ति से जो यश गावे। दुःख दारिद्र निकट नहीं आवे॥ ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥ जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥ शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥ निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहीं सुमिरो तुमको॥ शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥ शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥ भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥ मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥ आशा तृष्णा निपट सतावे। मोह मदादिक सब बिनशावे॥ शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥ करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला॥ जब लगि जिऊँ दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥ देवीदास शरण निज जानी। कहु कृपा जगदम्ब भवानी॥ ॥दोहा॥ शरणागत रक्षा करे, भक्त रहे नि:शंक । मैं आया तेरी शरण में, मातु लिजिये अंक ॥