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खैरागढ़ उपचुनाव : आज से थम गया चुनाव का प्रचार, इतने तारीख को होगा प्रत्याशियों की किस्मत का फैसलाला

प्रदेश में इस समय खैरागढ़ विधानसभा चुनाव को लेकर माहौल गर्म है. रविवार यानि आज चुनाव प्रचार का आखिरी दिन है. इसके बाद 12 अप्रैल को वोटिंग होनी है और 16 अप्रैल को नतीजे आएंगे. 16 अप्रैल को स्थिति साफ हो जाएगी कि खैरागढ़ की जमीन पर कांग्रेस का दबदबा बरकरार रहेगा या भाजपा (BJP) गद्दी छीन लेगी. प्रदेश के बड़े दोनों दलों के दिग्गज नेताओं ने सियासी मोर्चा संभाला हुआ है. दोनों कांग्रेस और बीजेपी ने पिछले दस दिनों में जमकर प्रचार किया. मध्य प्रदेश के दिग्गजों ने भी जोर आजमाइश कर ली. 


खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव प्रचार एक घंटे बाद यानि शाम 5 बजे थम जाएगा. 12 अप्रैल को होने वाले मतदान की तैयारियां जिला प्रशासन ने पूरी कर ली है. भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश के अनुसार आज शाम तक खैरागढ़ विधान सभा क्षेत्र में बाहर से आये सभी पार्टियों के नेताओं और कार्यकरताओं को वापस लौटना होगा. इसके बाद केवल स्थानीय नेता, उम्मीदवार और कार्यकर्ता ही डोर टू डोर जाकर प्रचार कर सकेंगे. जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार 12 अप्रैल के मतदान के लिए पूरे विधानसभा क्षेत्र में कुल 291 पोलिंग बूथ बनाये गए हैं, जिसमे नक्सल प्रभावित 53 संवेदनशील 11 और राजनीति दृष्टि से संवेदनशील 85 बूथ हैं. सभी बूथों पर पर्याप्त सुरक्षा के इन्तजाम किये गए हैं.

सुरक्षा के कड़े इंतजाम

मतदान के लिए करीब 1164 अधिकारियों और कर्मचारियों की डयूटी लगाई गई है. मतदान ईवीएम मशीन पर बटन दबाकर किया जाएगा. खैरागढ़ विधान सभा क्षेत्र में मूल 2 लाख 11 हजार 516 मतदाता हैं, जिसमें महिला मतदाता की संख्या 1 लाख 5 हजार 250 और पुरुष मतदाता 1लाख 6 हजार 266 है. पोलिंग के लिए मतदान दल 11 तारीख को सुबह बूथों के लिए रवाना होंगे. मतदान के दौरान जिला पुलिस बल के अलावा 22 केंद्रीय सुरक्षा बल की कंपनियां तैनात की गई हैं. साथ ही एक कंपनी स्ट्रांग रूम की सतत निगरानी के लिए तैनात की गई है.

2018 में ये थे नतीजे

2018 में हुए चुनाव पर नजर डालें तो यहां कांग्रेस और बीजेपी दोनों हार गए थे. इस समय देवव्रत सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर जनता कांग्रेस के चिन्ह पर चुनाव लड़ा था और बीजेपी की कोमल जंघेल को हरा दिया था. उस समय कांग्रेस को सिर्फ 31 हजार वोट मिले थे. विशेषज्ञों की मानें तो उस चुनाव में लोधी वोटबैंक के बंटवारे के चलते बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. इस बार दोनों पार्टियों ने इस खास वोटबैंक को साधने की कोशिश की है.